आज सुनो!प्रिय तुमसे,मेरा रूठने का मन है,
बस अपना वज़ूद ढूंढना है,नहीं कोई गम है,
तुम्हारा प्यार यूँही,नापने का मन हो चला है,
तुम भूले ध्यान रखना,क्या बुरा,क्या भला है।
आज तो सर में दर्द बड़ा,यही बनाना बहाना है,
असल में तो आज यूँ ही,तुमको आजमाना है,
तौलना है कि,तुम्हें मुझसे,कितना लगाव है,
लव यू कहने में,कितना सच कितना बनाव है।
क्या अब भी तुम मुझे,देख सब भूल बैठोगे ?
क्या सारे दिन आज,संग में मेरे ही ठहरोगे ?
क्या चाय संग फटाफट,ब्रेड बटर बनाओगे ?
क्या पानी संग दौड़के,सेरिडॉन ले आओगे ?
क्या बाम मेरे माथे पे,अपने हाथों से मलोगे ?
मुझे सुकून पाता देख,मन ही मन खिलोगे ?
मेरा मन बदलने को,फिल्म कोई दिखाओगे ?
या पंचवटी की,चटपटी चाट तुम खिलाओगे ?
या कहोगे चलो तुम्हें,पार्क हवा खिला लाऊं ?
या अमूल की पसंदीदा,बटरस्कॉच दिलवाऊं ?
या फोन मिला के,मेरी माँ से बात कराओगे ?
या खुदही यहां-वहां की,सुना मन बहलाओगे ?
तुम्हारी उदासीनता से,मेरा मन बौखलाया है ,
अपना महत्व जानने का,कीड़ा कुलबुलाया है,
क्या अब तुम्हें मुझसे,मुहब्बत ही नहीं रही ?
या मैं अब पुरानी हो चली हूँ,ये बात है सही ?
ये भी कोई जीवन है,न रूठना और न मनाना ,
तुम्हारा रोज ऑफिस और मेरा टिफिन बनाना ,
या बहुत साल संग रहते,सब आदत हो गई है ,
जो थी प्यार की खुमारी,कहीं जा के सो गई है।
तुम कामकाज पे जाते हो,मैं घर सम्हालती हूँ ,
न तो तुम कुछ कहते हो,और न मैं बोलती हूँ ,
मुझे तो ये पल-छिन,बिलकुल भी नहीं हैं भाते ,
हम मशीन की तरह,रोज के ये दिन हैं बिताते।
तुम चाँद तारों की अब कोई,बात नहीं हो करते ,
ये दिन बोरियत भरे अब तो,मुझसे नहीं हैं कटते ,
सो ! आज तो प्रिय मेरा तुमसे,रूठने का मन है ,
बस अपना वजूद ढूंढना है,और नहीं कोई गम है।
( जयश्री वर्मा )
बस अपना वज़ूद ढूंढना है,नहीं कोई गम है,
तुम्हारा प्यार यूँही,नापने का मन हो चला है,
तुम भूले ध्यान रखना,क्या बुरा,क्या भला है।
आज तो सर में दर्द बड़ा,यही बनाना बहाना है,
असल में तो आज यूँ ही,तुमको आजमाना है,
तौलना है कि,तुम्हें मुझसे,कितना लगाव है,
लव यू कहने में,कितना सच कितना बनाव है।
क्या अब भी तुम मुझे,देख सब भूल बैठोगे ?
क्या सारे दिन आज,संग में मेरे ही ठहरोगे ?
क्या चाय संग फटाफट,ब्रेड बटर बनाओगे ?
क्या पानी संग दौड़के,सेरिडॉन ले आओगे ?
क्या बाम मेरे माथे पे,अपने हाथों से मलोगे ?
मुझे सुकून पाता देख,मन ही मन खिलोगे ?
मेरा मन बदलने को,फिल्म कोई दिखाओगे ?
या पंचवटी की,चटपटी चाट तुम खिलाओगे ?
या कहोगे चलो तुम्हें,पार्क हवा खिला लाऊं ?
या अमूल की पसंदीदा,बटरस्कॉच दिलवाऊं ?
या फोन मिला के,मेरी माँ से बात कराओगे ?
या खुदही यहां-वहां की,सुना मन बहलाओगे ?
तुम्हारी उदासीनता से,मेरा मन बौखलाया है ,
अपना महत्व जानने का,कीड़ा कुलबुलाया है,
क्या अब तुम्हें मुझसे,मुहब्बत ही नहीं रही ?
या मैं अब पुरानी हो चली हूँ,ये बात है सही ?
ये भी कोई जीवन है,न रूठना और न मनाना ,
तुम्हारा रोज ऑफिस और मेरा टिफिन बनाना ,
या बहुत साल संग रहते,सब आदत हो गई है ,
जो थी प्यार की खुमारी,कहीं जा के सो गई है।
तुम कामकाज पे जाते हो,मैं घर सम्हालती हूँ ,
न तो तुम कुछ कहते हो,और न मैं बोलती हूँ ,
मुझे तो ये पल-छिन,बिलकुल भी नहीं हैं भाते ,
हम मशीन की तरह,रोज के ये दिन हैं बिताते।
तुम चाँद तारों की अब कोई,बात नहीं हो करते ,
ये दिन बोरियत भरे अब तो,मुझसे नहीं हैं कटते ,
सो ! आज तो प्रिय मेरा तुमसे,रूठने का मन है ,
बस अपना वजूद ढूंढना है,और नहीं कोई गम है।
( जयश्री वर्मा )