ओ पावन जीव जननी जलधार,महिमा तेरी अपरम्पार,
तेरे कारण ही,इस धरती पे फैला,इस सृष्टि का संचार,
तेरे वज़ूद के कारण ही,यह पृथ्वी,है नीला ग्रह कहलाई,
नदी किनारे बसीं सभ्यताएं,और विराटता इसने पाई।
तूने जलचर,थलचर,नभचर,सबकी ही प्यास बुझाई है,
तू जहाँ-कहीं से गुज़री जग में,वहीं पे हरियाली छाई है,
अपनी धुन में चंचल लहरों से,मधुर संगीत सुनाती तू,
हर बाधा को पार कर हमें,है जीवन का मर्म बताती तू।
है चहुँ और स्पंदन नदियों से,और नदियों से ही संसार,
युगों-युगों के इस बंधन संग,न हो उपेक्षा का व्यवहार,
नदियों से जीवन का रिश्ता,हमें हरहाल समझना होगा,
और जल संचयन का पाठ,हम सबको ही पढ़ना होगा।
वर्ना धरती पर बिखरी ये,मनभावन,हरियाली न होगी,
पशु,पक्षी,कीट और शिशुओं की किलकारी भी न होगी,
गर जल न रहा,वृक्ष न होंगे,तो आक्सीजन भी न बनेगी,
बिना प्राणवायु,इस जीवन की,फिर कहानी कैसे रहेगी।
जल का महत्व जानके हम,इसकी उपलब्धता की सोचें,
जल संचय के उपाय निकालें,और जल संरक्षण की सोचें,
सदानीरा नदियाँ ये रहें और उनकी अमरता की भी सोचें ,
सोचें कि कैसे ये प्रकृति बचे,और भूजल बढ़ाने की सोचें।
जल संरक्षण हेतु इस जल को,व्यर्थ में न बहने दें हम,
वर्षा से प्राप्त जल,संचित कर,बेकार में न जाने दे हम,
नदियों अपनी स्वच्छ रखें,उन्हें प्रदूषित न होने दें हम,
गन्दगी,कूड़ा,पूजन-सामग्री फेंक बीमार न होने दे हम।
मृत पशु,मृत शरीर कदापि न,इन नदियों में बहाए जाएं,
अंतिम संस्कार को,इलेक्ट्रिक शव दाह गृह ही अपनाएं,
न डालें कारखानों का दूषित जल,इन पावन नदियों में,
वर्ना जीवन मुश्किल होगा,आगे आने वाली सदियों में।
जल राशि का मूल्य जानें,ताकि भविष्य भयावह न रहे,
वृक्षों की तादाद बढ़ाएं,ताकि जल धरती में ही रुका रहे,
कुँए,पोखर व तालाब बनाएं,ताकि जल संचित होता रहे,
हर व्यक्ति जागरूक हो,ताकि जीवन धरती पे बचा रहे।
जल जीवन है,जल स्पंदन है,जल से है यह धरती जवान,
नदी बचाएं,नदी सहेजें,यही जल,जंगल,जमीन की जान,
इस आकाशगंगा में है केवल,पृथ्वी ही,जीवन की पहचान,
जल से ही जीवन संभव है,सबमें बांटना होगा यह ज्ञान।
( जयश्री वर्मा )
तेरे कारण ही,इस धरती पे फैला,इस सृष्टि का संचार,
तेरे वज़ूद के कारण ही,यह पृथ्वी,है नीला ग्रह कहलाई,
नदी किनारे बसीं सभ्यताएं,और विराटता इसने पाई।
तूने जलचर,थलचर,नभचर,सबकी ही प्यास बुझाई है,
तू जहाँ-कहीं से गुज़री जग में,वहीं पे हरियाली छाई है,
अपनी धुन में चंचल लहरों से,मधुर संगीत सुनाती तू,
हर बाधा को पार कर हमें,है जीवन का मर्म बताती तू।
है चहुँ और स्पंदन नदियों से,और नदियों से ही संसार,
युगों-युगों के इस बंधन संग,न हो उपेक्षा का व्यवहार,
नदियों से जीवन का रिश्ता,हमें हरहाल समझना होगा,
और जल संचयन का पाठ,हम सबको ही पढ़ना होगा।
वर्ना धरती पर बिखरी ये,मनभावन,हरियाली न होगी,
पशु,पक्षी,कीट और शिशुओं की किलकारी भी न होगी,
गर जल न रहा,वृक्ष न होंगे,तो आक्सीजन भी न बनेगी,
बिना प्राणवायु,इस जीवन की,फिर कहानी कैसे रहेगी।
जल का महत्व जानके हम,इसकी उपलब्धता की सोचें,
जल संचय के उपाय निकालें,और जल संरक्षण की सोचें,
सदानीरा नदियाँ ये रहें और उनकी अमरता की भी सोचें ,
सोचें कि कैसे ये प्रकृति बचे,और भूजल बढ़ाने की सोचें।
जल संरक्षण हेतु इस जल को,व्यर्थ में न बहने दें हम,
वर्षा से प्राप्त जल,संचित कर,बेकार में न जाने दे हम,
नदियों अपनी स्वच्छ रखें,उन्हें प्रदूषित न होने दें हम,
गन्दगी,कूड़ा,पूजन-सामग्री फेंक बीमार न होने दे हम।
मृत पशु,मृत शरीर कदापि न,इन नदियों में बहाए जाएं,
अंतिम संस्कार को,इलेक्ट्रिक शव दाह गृह ही अपनाएं,
न डालें कारखानों का दूषित जल,इन पावन नदियों में,
वर्ना जीवन मुश्किल होगा,आगे आने वाली सदियों में।
जल राशि का मूल्य जानें,ताकि भविष्य भयावह न रहे,
वृक्षों की तादाद बढ़ाएं,ताकि जल धरती में ही रुका रहे,
कुँए,पोखर व तालाब बनाएं,ताकि जल संचित होता रहे,
हर व्यक्ति जागरूक हो,ताकि जीवन धरती पे बचा रहे।
जल जीवन है,जल स्पंदन है,जल से है यह धरती जवान,
नदी बचाएं,नदी सहेजें,यही जल,जंगल,जमीन की जान,
इस आकाशगंगा में है केवल,पृथ्वी ही,जीवन की पहचान,
जल से ही जीवन संभव है,सबमें बांटना होगा यह ज्ञान।
( जयश्री वर्मा )
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