Monday, April 22, 2013

मेरा सच्चा मित्र


मेरे आँगन की गोदी में इक,रहता वृक्ष निराला है,
मैंने ये हरा-भरा सा वृक्ष,बड़े ही यत्नों से पाला है,
यह मेरा जीवन सत्य बना है,मैं इसका हूँ हमदम,
ये मेरे सुख-दुःख का है दृष्टा,हर पल और हरदम।

जब कभी मैं थक जाता हूँ,इसकी शरण आ जाता हूँ,
जीवन के जटिल सवालों के,सारे उत्तर पा जाता हूँ,
यह खुली शाखाएं बढ़ा मुझे,अपनी बाहों में बुलाता है,
मधुर हवा और शीतल छाँव में,थपकी दे के सुलता है।

यह आशा है,यह आश्रय है,यह जीवन है कई परिंदों का,
नव घरोंदों,पक्षी-कलरव और नित नए मधुर छंदों का,
मुन्नी,सुहैल,जॉन,परमिंदर,इस पर आकर झूला झूलें,
इतना ऊँचा-इतना ऊँचा कि जैसे आसमान अब छूलें।

मैंने अपने हांथों से जब रोपा,तब यह नन्हा पौधा था,
नित पाला,नित सींचा,ये दोस्ती का अटूट सौदा था,
आज युवा हो और बलिष्ठ हो,यह मेरा बना सहारा है,
प्राणवायु,फलफूल सौंपकर,जैसे उतारता कर्ज़ हमारा है।

तीक्ष्ण धूप,भीषण वर्षा से यह मुझको,देता खूब सुरक्षा है,
दुःख में सुख में,मैं इससे जा लिपटा,मेरा मित्र यह सच्चा है,
आप भी संकल्प उठा अपने हाथ एक वृक्ष अवश्य लगाएं,
इक वृक्ष लगा,हरियाली बढ़ा इस धरती का कर्ज़ चुकाएं।

                                                                                              ( जयश्री वर्मा )


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