जो बीत गया सो वो जाने दो ,
जो आ रहा वो स्वीकार करो ,
ये वर्तमान जो अब हाथ में है,
तो इस वर्तमान से प्यार करो।
कुछ खट्टा सा है,कुछ मीठा सा है ,
कुछ तीखा सा है,कुछ फीका है ,
कुछ खुशियों सा,कुछ दुःख भरा,
कुछ सम्मुख है,तो कुछ छूट रहा।
अलग-अलग सा रूप है इसका,
और कुछ अलग-अलग सा रंग ,
अलग-अलग सा दर्शन है सबका,
और कुछ अलग-अलग सा ढंग ।
यूँ हार न मानो इस वर्तमान में,
तुम ऐसा वर्तमान को जी लो,
वर्तमान की सुस्वादु हाला यह,
इसके तुम हर स्वाद को पी लो।
कुदरत ने है सबको समान रचा,
मत तुम यूँ कोसो अपना भाग्य,
अपने ही हाथों से लिख डालो तुम,
खुद के इस जीवन-जन्म का राग।
कुछ ज्ञान भरोऔर कुछ प्रेम भरो,
कुछ तुम मेहनत से साकार करो ,
कुछ खुशी भरो,कुछ त्याग भरो,
कुछ अलग-अलग सा सार भरो ।
फिर देखो जीने का क्या मतलब,
जब खुद के हाथों से तकदीर बने,
वक्त झुके सम्मुख और तब इस,
सुन्दर जीवन की तस्वीर बने ।
तुम वर्तमान की रचना में डूबो,
और इसके ख्वाबों में उतराओ,
वर्तमान की जीवन सरिता संग,
बस तुम बहते ही चलते जाओ ।
( जयश्री वर्मा )