इक अजब हलचल सी लाए तुम ,
तुमने रंग बिखेरे पहले धरती पर ,
और फिर खुद पे ही इतराए तुम।
रंग भरी सी शरारतें सब बिखरीं ,
खूबसूरती जवाँ चेहरों पे निखरी ,
खेतों में है लहराए,गीतों की झड़ी ,
पर मेरी पलकें तो,सूनी सी पड़ीं।
कैसे हाल कहूँ तुम्हें इस जिय का ,
इस रीते और व्याकुल से मन का ,
यूँ न मुस्कुरा ओ निष्ठुर-निर्मोही ,
ये मन सूना,रास्ता देखे पिय का।
तुम क्या जानों,कैसी,विरह-वेदना ,
हर आहट पर द्वार,चौखट तकना,
हर सरसराहट पे धड़कन बढ़ जाना ,
तुम यूँ जानबूझ के न बनो बेगाना।
अब जब आ ही गए,तो ठहरो ज़रा ,
इन नैनों में,सपने ही भर लूँ ज़रा ,
ये भ्रम ही सही,पर ये है तो सुखद ,
इस डूबते मन को,कुछ लगे भला।
दिल को बहलाने की,ये चाल चली ,
कल्पना लोक की है,ये डगर भली ,
सपनों की गलियों में,मैं टहली बड़ी ,
यूँ फिर से,अरमानों की बलि चढ़ी।
यूँ फिर से,अरमानों की बलि चढ़ी।
सारे रंग-उमंग,सब ओर बिखेरते ,
ऐसे पूरी धरती को,पुष्पों से घेरते ,
अरे ओ बसंत! फिर से आए तुम ,
इक अजब हलचल सी लाए तुम।
- जयश्री वर्मा
अति सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका दीपशिखा जी !🙏 😊
Delete🙏 😊
ReplyDeleteतुम क्या जानों,कैसी विरह-वेदना ,
ReplyDeleteहर आहट पे द्वार,चौखट तकना,
हर सरसराहट,धड़कन बढ़ जाना ,
तुम यूँ जान बूझ न बनो बेगाना।
अति सुंदर सृजन ,सादर स्नेह
🙏 😊
Deleteविरही को बसंत न भाये
ReplyDeleteशीतल शशि ताप बरसाये...
बहुत ही सुन्दर रचना..
वाह!!!
सादर धन्यवाद आपका सुधा देवरानी जी !🙏 😊
Deleteजयश्री वर्मा जी वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें
ReplyDeleteनई पोस्ट - लिखता हूँ एक नज्म तुम्हारे लिए
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !🙏 😊
DeleteRation Card
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर धन्यवाद आपका 🙏 😊
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