Friday, January 27, 2017

खेल राजनीति का खेलें

आओ हम मिलकरके खेल,राजनीति-राजनीति का खेलें,
देश को रखें एक तरफ और फिर सम्पूर्ण स्वार्थ में जी लें।

भिन्न-भिन्न पार्टियाँ बनाकर,चिन्ह अपनी पसंद का लगाएं ,
कमल,साइकिल,हाथी,पंजे या अन्य से,आओ इसे सजाएं।

करें घोटाले,घपले,हवाले,सबको खुली छूट है इस खेल में,
पैसे की महिमा के बल पर,कोई भी नहीं जाओगे जेल में।

देश डूबे या दुश्मन के हमले हों,कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ,
बस इक दूजे पे आक्षेप लगाएं,यह खेल है अलग सा निराला।

किसी को विदेशी,किसी को कट्टर कह जनता को भड़काएं,
सत्र कितना भी जरूरी हो पर,हर काम में ही रोड़ा अटकाएं।

बस अपने घर को धन से भर लें,चाहे ये जनता जाए भाड़ में ,
हर तरह का कर्म कर डालें,मुस्कुराते मुखौटे की आड़ में।

रमजान में रोज़ा इफ्तारी और मकर संक्रांति में हो खिचड़ी ,
हिन्दू,मुस्लिम वोट बैंक छलावे में,ये जनता भोली है जकड़ी ।

भाषण व उदघाटन उद्घोष कर,इस पब्लिक को बरगलाएं ,
और हर मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा जा,ईशवर को भी फुसलाये।

पोशाक रहेगी सफ़ेद टोपी संग,पर कोई दाग न लगने पाए ,
सफ़ेद लिबास की आड़ में क्या करते हैं,कोई ये जान न पाए।

नए वादों के घोषणा पत्र बनाकर,मीडिया से प्रचार करवाएं ,
वादा खिलाफ़ी कर सकते हैं,पर पहले सत्ता अपनी हथियाएँ। 

स्कूल,अस्पताल,सड़क के नाम पर,धन में गोते खूब लगाएं ,
काम धकाधक होना जरूरी,चाहे सब फाइलों पे निपटाएं।

नियम क़ानून ताक पर रखकर,बस नोट की खेती उगाएं,
भूख,बाढ़ से कोई मरे तो,परिवार को,दो-दो लाख पकड़ाएं।

तुम सत्ता में रहो तो हमें सम्हालो,हम सत्ता में तुम्हें सम्हालें ,
कोर्ट,सीबीआई सब ही सध जाएगी,बेखौफ़ कुर्सी अपनालें ।

बड़ा आनंद आएगा चलो मिल,इस सत्ता का स्वाद भी ले लें ,
तो आओ हम मिल करके,खेल राजनीति-राजनीति का खेलें ।

                                                                         ( जयश्री वर्मा )





Wednesday, January 18, 2017

हमारे बाँकुरे जवान

जिनसे अपनी है सुबह शाम,वो हैं सीमाओं पर खड़े हुए,
वो प्रहरी वो सीमा रक्षक,वो जवान सीमाओं पर डटे हुए।

उनके होने से हम बेफिक्र,उनसे सुरक्षित अपना सम्मान,
उनके लिए तो बस सर्वोपरि,देश की-आन,बान और शान।

उनका भी तो है घर-द्वार,और उनका भी है अपना परिवार,
पर देश है उनकी प्राथमिकता,देश ही उनका सच्चा प्यार।

उनके लिए दिन-रात एक हैं,हरदम,हरपल सचेत वो रहते,
भारत माँ की रक्षा करने को,हंस-हंस कर सब कुछ सहते।

चाहे आंधी हो,तूफान चले,चाहे बरसें तीखे बर्फ के गोले ,
हो कैसा भी संकट,रुकावट,वो साहस संग सबकुछ सहलें।

दुश्मन कितनी कोशिश कर ले,पर इरादों को न डिगा सके,
हिम्मत उनकी है फौलादी,उन्हें कोई भी चुनौती न डरा सके,

प्राणों की बाजी लगा,शत्रुओं को हराएं ऐसे हैं बाँकुरे जवान,
तब स्वतंत्र हवा में सांस हम लेते,हमारे सपने चढ़ते परवान।

उनकी उम्मीद,तसल्ली उनके परिवार की चिट्ठी से जुड़ी है,
और घर जाने की छुट्टी स्नेह और उम्मीद से जुड़ी-कड़ी है।

रहे ये अमर जवान ज्योति सदा,हो सुरक्षित देश की आवाम,
हे वीरों ! शत-शत नमन तुम्हें,है मेरा शत-शत तुम्हें सलाम।

                                                                                        - जयश्री वर्मा