Thursday, October 24, 2013

गर क़ुबूल है

मित्रों ! मेरी यह रचना दिल्ली पत्र प्रकाशन प्र० लिमिटेड द्वारा प्रकाशित " गृहशोभा " पत्रिका में प्रकाशित हुई है।आप भी इसे पढ़ें -

गर क़ुबूल है 

लाख छुपाएं आप दिल के राज़,छुपा नहीं पाती हैं,
इश्क के उठे तूफानों को आप,दबा ही नहीं पाती हैं,
नज़रें इधर-उधर ढूंढती,मुझ पर ही ठहर जाती हैं,
आपकी निगाहें तो सिर्फ,मेरा अक्स ही दिखाती हैं। 

आपको एहसास नहीं है शायद,अपनी हालत का,
आपके दिल में तूफ़ान से,अरमान हैं जो दबे हुए,
कितनी ही शांत दिखें आप,मुखर हो ही जाते हैं,
आपकी जुबान बस,मेरे अफ़साने ही दोहराती है।

चैन न मिलेगा कभी,आपको अपनी शामों में,
यूँ रात भी जाएगी आपकी,आँखों ही आँखों में,
क्यों रातों को पलकें बंद,करने से आप डरती हैं?
जानता हूँ आपकी रातें,मेरे ख्वाब ही दिखाती हैं।

यूँ तो प्यार भी हर किसी के,नसीब में नहीं होता,
इस कदर टूटकर चाहने वाला भी,कहीं नहीं होता,
अगर क़ुबूल है आपको तो,इज़हार भी तो कीजिये,
ज़िन्दगी तो सफ़र है,इंतज़ार में भी गुज़र जाती है।

                                                   ( जयश्री वर्मा ) 




Tuesday, October 1, 2013

पर्यावरण व्यवहार

सबके है,मन को भाए,प्रकृति की ये,हरी-भरी कोमलता,
स्वच्छ हवा की भीनी खुशबू,और चिड़ियों की विह्वलता,
पुष्प लताओं और हरियाली से,किसका मन नहीं हर्षाता,
गर साफ़ स्वच्छ परिवेश दिखे तो,किसको नहीं सुहाता।

हमने वृक्ष मिटा,कंक्रीट बिछाई,किया वातावरण प्रदूषित,
रसायनों का करके प्रयोग,किया हवा और पानी भी दूषित,
परिवेश संवारेंगे,संकल्प उठाएं,पर्यावरण करें न कलुषित,
ये जागरूकता भविष्य बचाएगी,और धरती होगी हर्षित।

मदद करें,पर्यावरण सँवारने में,मिलजुल सब हाथ बढ़ाए,
कुछ नियमों को मानें हम,और कुछ बातें संज्ञान में लाएं,
जो हुआ नुकसान हो चुका चलो,अब भी सचेत हो जाएं,
करके प्रयास पर्यावरण सुधार का,शिक्षित हम कहलाएं।

पॉलीथीन नकारें,कपड़े या जूट का थैला,प्रयोग में लाएं, 
पुराने वस्त्रों का करें दान,या पोंछा,डस्टर,कैरी बैग बनाएं,
फर्नीचर से ऊब जाएं तो,कुछ बदलाव कर,रीयूज में लाएं,
विचारों की रचनात्मकता से,फिर से,नया सरीखा बनाएं।

नॉन बायोडिग्रेडेबिल कबाड़,रिसाइकिल होने को दे दें,
घरेलू कचरा,नगर निगम के बने हुए,कचराघर में ही फेंकें,
रसोई में कम प्रयोग हों,प्लास्टिक की बोतल,कटोरी,प्लेटें,
पानी का करें सुनियोजित प्रयोग,इसे बस बर्बादी से रोकें।

गर हर मानव,इक वृक्ष लगाए,फिर,वायु प्रदूषित न होगी,
जल सहेज के इस्तेमाल करें,तो कमी इसकी भी न रहेगी,
हर बच्चा सीखे पर्यावरण सुरक्षा,महत्व प्रकृति का बताएं,
वृक्ष लगाना,व उन्हें बचाना,हरियाली का महत्व समझाएं।

टीवी,कम्प्यूटर,मोबाइल युग में,सुख-सुविधाएं तो बढ़ी हैं,
परंतु प्रयोग के साथ,घातक बीमारियां भी,परवान चढ़ी हैं,
इस ई-कचरे का सही रिसाइकिल हो या एक्सचेंज में जाए,
पुराने इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स,भूलसे भी,खुले में न फेंके जाएं।

नदियाँ जीवित,तो ही जीवन संभव है,ये हर कोई ही जाने,
इनकी स्वच्छता का संकल्प,हम सब आज ही मन में ठाने,
वृक्ष,कीट,पशु और पक्षी,सभी पर्यावरण के लिए अहम हैं,
सबके ही लिए,ये धरती है और,सबके ही लिए ये गगन है।

हमारे ही जागरूक प्रयास से,हमारा ये पर्यावरण संभलेगा,
अगर सहयोग करें,हम सब मिलकर,धरती का रूप संवरेगा,
इस जल,जंगल,जमीन की रक्षा,आखिर जिम्मेदारी है हमारी,
इसी सोच के संग हम कर ले,पर्यावरण संरक्षण की तैयारी।

वृक्ष लगाना,फ़र्ज़ समझ,इस धरती को,हरियाली से भरदें,
रुग्ण धरा को,स्वस्थ बना हम,नव पीढ़ियों के नाम कर दें,
पर्यावरण स्वच्छ होगा तभी,प्राणवायु भी स्वच्छ मिलेगी,
पोखर,तालाब नदियाँ रहें,तभी जीवन की सरगम चलेगी।

पंछियों का कलरव गूंजेगा,और जल,जंगल सम्पदा बढ़ेगी,
बीमारियाँ कम फैलेंगी,मानव स्वास्थ्य निधि,परवान चढ़ेगी,
गर अपने पर्यावरण के,रक्षक बन,हम,ज्ञान का परिचय देंगे,
आने वाली पीढ़ियों के संग में,हम खुद पे भी एहसान करेंगें।

                                                                (जयश्री वर्मा )