Wednesday, February 1, 2017

मन बसंत


पीले-पीले फूल खिले,सरसों से भरे हैं खेत झुके,
प्रकृति की ये छटा देख,कदम भी हैं रुके-रुके,
गेंदा हज़ारा की खिली,पंखुड़ियों की पीत छटा,
पीले से सभी फूल झांकें,हरे पत्तों की ओट हटा,
आसमान के योग से ये,खुल रहे हैं राज अनंत,
मदमाती,इठलाती सी,धरती हुई है आज बसंत।

माँ सरस्वती का वन्दन,बसंत का अभिनन्दन,
गीतों की फुहार से है,मन-मन,आनंद-आनंद,
होलिका का आह्वान,ख़ुशी,उत्साह संग-संग,
किसानों के सुर गूंजे,गुजरियों की चाल उमंग,
अठखेलियाँ,ठिठोली,ख़ुशी का नहीं कोई अंत,
हर ख़ुशी में बसंत और हर हास छलके बसंत।

तन,सांस महक रही,दिल की धड़कन है तेज़,
चूनर मोरी रंग दे बसंती,ओ रे सयाने रंगरेज,
सात सुर गूंजें नस-नस,प्रीत रच गीत संगीत,
मन विचार हैं बहके,कैसी ये प्रीत अगन रीत,
इस मीठी सिहरन का,नओरछोर,न कोईअंत,
ओ सुन पिया सँवारे!आज मेरा है मन बसंत।

                                       ( जयश्री वर्मा )

2 comments:

  1. bahut sundar rahna .... prem aur basant ka madhur sangam hota hai ... prakriti khil rahi hai ...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद Digamber Naswa जी !

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