सुबह के 4:30 का अलार्म जगाने को बोला,
कोई फुसफुसाया-ज्यों ही आँखों को खोला,
अरे रुको!
सभी सोए हैं तुम भी तो थोड़ा सा और सो लो,
मीठे से सपनों में अभी ज़रा सा और खो लो,
मैंने कहा -
तुम कौन? और भला क्यों रोक रहे हो मुझको,
मैंने तो ये अधिकार कभी नहीं दिया किसीको,
उसने कहा-अरे भाई! मैं तो वक्त हूँ तुम्हारा,
रिश्ता तो जन्म से ही जुड़ा है तुम्हारा-हमारा,
ग़र मेरी नहीं तो फिर,किसकी बात सुनोगी ?
अरे!और कितना दौड़ना है,कभी तो रुकोगी?
मैंने कहा-भला तुम्हारे इशारे पे मैं क्यों नाचूँ ?
तुम मेरे हितैषी हो,ऐसा कैसे और क्यों सोचूँ ?
मुझको क्या अब,तुम ही दिखाओगे हर रास्ता?
भला क्यों?तुम्हारी बात से रखूं कोई मैं वास्ता?
अपनी शर्तों पर मैंने,अपने दिन-रात बिताए हैं ,
तेज आँधियों में भी,हठ पूर्वक दीपक जलाए हैं।
बात सुनो मेरी !
तुम यूँ फुसला के,मुझे निर्बल बनाना चाहते हो?
मनोबल झुका के मेरा,हार मनवाना चाहते हो?
नित बिना रुके,कसती हूँ अपने इस शरीर को,
थकने नहीं देती,अपनी अंतरात्मा के ज़मीर को,
टहलना,साईकिल,हँसना,दोस्त और नृत्य सब,
फिर बताओ कैसे और,क्यों मौक़ा दूँ तुम्हें अब,
मेरा पूरा परिवार,मेरे इर्दगिर्द लिपटा है मुझसे,
ग़र मुझ बिन हताश हुआ,तो भला चलेगा कैसे?
उम्मीद हूँ सबकी,घर की भोजन-भरी थाली हूँ,
ओतप्रोत हूँ भावों से,नेह की शरबती प्याली हूँ,
नन्ही पोती है मेरी,उसे बढ़ते देखना चाहती हूँ,
डोर हूँ रिश्तों की,सबको चौखट से बांधती हूँ।
मुझे ही सम्हालना है,यही सोच मुझे जगाती है,
मेरे जीने के महत्त्व का,एहसास मुझे कराती है,
अब तक जो भी पाया,सुख-दुःख,धोखा-विश्वास,
अपनों को पाना-खोना,प्यार की अतृप्त प्यास,
तुम्हें बखूबी जानती हूँ,तो कैसे सच्चा मान लूँ?
और तुम जो कहो,वही राह है सही,स्वीकार लूँ?
इकसठ की हो गई हूँ,अभी उत्साह है मुझमें,
मुझे बातों से फुसला ले,ऐसा दम नहीं किसीमें,
तुम सोचोगे-कैसी अजीब हठी से पाला है पड़ा,
समय की न सुनने वाला,अपनी जिद्द पे है अड़ा,
तुमसे जीती तो,अपनी शर्त पे ज़िंदगी जी लूंगी,
गर! हारी तो,तुम्हारे कहे अनुसार ही ढल लूंगी।
वक्त हंसा,बोला तुम अपनी धुन की पक्की हो,
किसी की नहीं सुनती,अजीब,बड़ी झक्की हो,
कैसे कहूँ के ऐसे लोगों से तो मैं सदा ही हारा हूँ,
तुमसे लम्बा संग-साथ रखूंगा,मैं अब तुम्हारा हूँ,
अच्छा!अब उठती हूँ,एक कड़क चाय बनाती हूँ,
सुबह जाग के,अपने दिन को सुनहरा बनाती हूँ।
- जयश्री वर्मा
अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग एवं स्वयं से प्रेम करने वालों के लिए उम्र महज एक नं. के सिवा और कुछ नहीं।
ReplyDeleteप्रेरक अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अगस्त २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद Sweta sinha जी !🙏 😊
Deleteसुन्दर रचना |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका सुशील कुमार जोशी जी !🙏😊
Deleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका ओंकार जी !🙏😊
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