Wednesday, February 26, 2020

मैं स्पंदन हूँ

मैं सृष्टि का जना आधा हिस्सा हूँ,
इस पूर्ण सत्य का पूर्ण किस्सा हूँ,
मैं हर स्त्रीलिंग की पहचान में हूँ,
मैं भूत से भविष्य की जान में हूँ ,
मैं मरियम,आयशा और सीता हूँ,
मैं ही रामायण,कृष्ण की गीता हूँ,
मैं सभी धर्म ग्रन्थ का केंद्र भी हूँ ,
मैं काल का लिखा सत्येंद्र भी  हूँ,  
मैं तुममें,तुममें और तुममें भी हूँ ,
मैं खुदके भी जीवन स्पंदन में हूँ,
मैं इक ममत्व,त्यागपूर्ण जननी हूँ, 
मैं माँ,बेटी,बहन और सहचरी हूँ,
मैं स्त्रीलिंग हूँ,सृष्टि को सहेजे हुए,
मैं कई सभ्यताओं को समेटे हुए,  
मैं तो हूँ जीवन का उन्मुक्त हास,
मैं हूँ अनंत प्रेम की अतृप्त प्यास,
मैं नारी हूँ मैं रिश्तों का बंधन हूँ,
मैं विनाश का इक क्रंदन भी हूँ ,
मैं मंदिर की नौ रुपी देवी भी हूँ,
मैं प्रतिज्ञा की सुलगती वेदी भी हूँ,
मैं अहँकारी के मान का भंजन हूँ,
मैं हर जीवित-जीव का स्पंदन हूँ,     
मैं प्रेमी हृदय की कोमल नायिका,
मैं टूटे मन की हूँ इक सहायिका,   
मैं घर की चौखट का इंतज़ार हूँ ,
मैं समस्त परिवार का प्यार भी हूँ,
मैं श्रेष्ठ श्रृंगार बिछिया-सिन्दूर हूँ,
मैं जितनी पास हूँ उतनी दूर भी हूँ,   
मैं रसोई की स्वादमय खुशबू हूँ,
मैं शिशु की दुनिया की जुस्तजू हूँ,
मैं केंद्र हूँ कवि की कल्पनाओं का, 
मैं रंग कैनवास की अल्पनाओं का ,   
मैं इस सोलर सिस्टम की धड़कन हूँ , 
मैं इकमात्र स्त्रीलिंग ग्रह धरती भी हूँ।

                                         - जयश्री वर्मा



Tuesday, February 18, 2020

आओगे के न आओगो

ये मौसमों का आवाज़ देना,जगाना,बुलाना,हर पल ,
और पलकों संग ख़्वाबों की,लुका-छिपी की हलचल ,
के इन हवाओं का बहना,बिना बंधन हो के बेपरवाह ,
इंतज़ार है तुम्हारा,तुम आओगे या के न आ पाओगे।

मेरे पहलू में बैठो तो ज़रा,बातें कहो-सुनो तो ज़रा ,
मेरे और अपने दिल के,जज़्बातों को,गुनो तो ज़रा ,
कुछ पल अपने ये,मेरे नाम लिख कर के तो देखो ,
फिर नहीं पुकारूंगा,रुकोगे या के न रुक पाओगे।

कुछ अपनी,मौसमों,और इन पंछियों की बात करो ,
के मेरे जज़्बात संग,अपने विश्वास की हामी तो भरो ,
कुछ कदम तो साथ चलो,फिर रहा फैसला तुम्हारा ,
मेरी धड़कनों को सुन पाओगे या के न सुन पाओगे।

ऐसा नहीं है कि,हर कोई ही,गुनहगार हो दुनिया में ,
ये वादा रहा,खुशियाँ ही उगाऊंगा,जीवन बगिया में ,
खरा ही उतरूंगा,हर कदम,अब मर्ज़ी तुम्हारी आगे ,
चाहा तुमने भी है,कह पाओगे या के न कह पाओगे।

यूँ तो तुम्हारे ठिठके कदम भी,अब आगे बढ़ते नहीं हैं,
तुम्हारे ख्वाब भी जो थे तुम्हारे,अब वो तुम्हारे नहीं हैं,
तुम्हारी मन वीणा का,हर तार ही पुकार रहा है मुझे, 
अब है फैसला तुम्हारा,लौटोगे या के न लौट पाओगे।

के आ भी जाओ इस दुनिया की राहें बड़ी बेरहम हैं ,
जहाँ बिछड़े,उसी मोड़ पे,इंतज़ार में अबतक हम हैं ,
इतनी भी कमजोर नहीं है मेरी मुहब्बत की ये ज़मीन,
खाली न जाएगी दिल की पुकार,तुम आ ही जाओगे।                        
                                                                                             -  जयश्री वर्मा

Thursday, February 6, 2020

ऐसा कुछ भी नहीं

क्यों नहीं कह देते जो कोई,मन में आरज़ू है तुम्हारे,
शायद ख़यालात एक जैसे,मिलते हों तुम्हारे-हमारे,
के जो कोई पल बेचैन कर गया हो,तुम्हारे दिल को,
शायद वैसा लम्हा मैने भी अपने ज़ेहन में जिया हो।

कि कहीं तुमने भी तो किसी की,रुसवाई नहीं सही?
और तुम्हारी टूटन की आवाज़,जो है अंदर दबी हुई ,
हमदर्द कोई न मिला तभी,कसक किसी से न कही,
मेरी भी तो अपनी दास्तान,कुछ-कुछ ऐसी ही रही। 

कह डालो आज कि हम दोनों,एक ही जैसे मिले हैं,
लगता है हमारे तुम्हारे,एक से शिक़वे और गिले हैं,
रिश्ते सबके ही स्नेह भरे,अपनत्व पूर्ण तो नहीं होते,
वर्ना भला क्यों अरमान,दिल के दिल में ही सुलगते।

सुख का ही नहीं दुःख का भी,अटूट रिश्ता होता है,
वर्ना क्या ऐसे,एकांत का हाथ थामे,कोई दिखता है?
वीराने में जैसे इक उम्मीद का,फूल खिल आया  है,
शायद वक्त ने हताशा से,बचाने को,हमें मिलाया है। 

न रोको आंसू ये सुलगते हुए,ख्यालातों को बुझाएँगे,
सोच की धुंध को धुल के,नई जीने की राह दिखाएंगे,
कि ऐसा कुछ भी नहीं,जिसे वापस न लाया जा सके,
उदास चेहरे पे मुस्कान को,पुनः खिलाया न जा सके।

फूल आज भी तो खिले हैं,सवेरा आज भी तो उगा है,
के रात बेरहम गुज़री है अभी,चाँद पुराना हो चला है,
क्या अँधेरा कभी रोक सका है,सुबह की लालिमा को?
यूँ ही वक्त भी मिटा देगा,इन लम्हों की कालिमा को।

क्यूँ नहीं भुला सकते,जो भविष्य हमने ही लिखा था ?
क्यूँ न गुज़री बात मान लें,जो रिश्ता अटूट दिखा था ?
हारते नहीं हैं यूँ,कि हर शय से,जूझना आना चाहिए,
ऐसा भी नहीं कि गम को,भुलाने को ज़माना चाहिए।

                                                       -  जयश्री वर्मा