Monday, August 3, 2015

जरा कह दो

जरा इन राहों से कह दो,कि पलकें बिछाएं,
हवाओं से कह दो,दिलकश गीत गुनगुनाएं,
मोहक सुरलहरी से,दिलों में हलचल मचाके,
बहके जज़्बात के संग,आसमां पे छा जाएँ।  


बगिया से कह दो,नहीं फूलों पे कोई बंदिश,
जिन फूलों को संवरना है,खूब रंगों में नहाएं,
मतवाला बना दें,खुशबुओं से ये सारा समां,
ये विचारों में ढल के,मेरी सम्पूर्णता महकाएं।

नदियों से कह दो बनके,चंचल बेख़ौफ़ बहें ये,
कल-कल के शोर से,हर जीवन को भर जायें,
सूरज की ये मचलती,कुनकुनी धूप जो आई है,
पलकों में बसके,ये मेरी तमाम सुबहें चमकाएं।

चाँद-तारों से कह दो,टिमटिमा के संग सारे ये,
बदली की ओट छोड़,आके मेरी चूनर दमकाएं,
तितलियों से कह दो,भले ही यहाँ-वहाँ उड़ें सब,
ये जज़्बात मेरे दिल के,वो किसी से भी न बताएं।

जज़्बात मेरे सपने हैं,और ये राज मेरे अपने हैं,
मेरे अंतरमन के संग जुड़े,ये भाव बड़े गहरे हैं,
खो जाऊं जब मैं इन,मतवाले से ख़्वाबों के संग,
तब कह दो जमाने से कि,कोई शोर न मचाए।

ये ज़माना है मुझसे ही,भले ही ये इक भ्रम सही,
ये नव दास्ताँ है मेरी,जो किसी ने न पहले कही,
ये धरती तो मेरी है,और ये आसमान भी मेरा है,
मुक्त कंठ स्वीकारेगा युग,जो मेरी है कही-सुनी। 

जब सोच और स्वच्छंदता,मुझे ऐसे बेखौफ बनाए,
तब कोई भी छुपके-चुपके से,मेरे ख़्वाब न चुराए,
यूँ यौवन की दहलीज का,कुछ तकाज़ा ही ऐसा है,
कि खुशियाँ सारे जग की,इन बाहों में समा जाएं।

                                                                           ( जयश्री वर्मा )