Thursday, August 28, 2014

सदा बनी रहे

सूरज की लाली,पृथ्वी की हरियाली,
सागर का धैर्य,नदियों की लहरें मतवाली,
पंछियों का कलरव,भँवरों के गुनगुन का हौसला,
पुष्पों की रंगत और मनभावन ख़ुश्बू,सदा बनी रहे,बनी रहे।

बच्चों का बचपन,माँ का ममत्व,दुलराना,
पिता की छत्रछाया,गुरु का जीवन संवारना,
शिष्यों में शिष्टाचार,दोस्तों का हो विश्वास,प्यार,
दादी,नानी की कहानियाँ हज़ार,सदा बनी रहें,बनी रहें।

पुरुषों में स्वाभिमान,ललनाओं का सम्मान,
बुज़ुर्गों का आशीर्वाद,सन्यासियों में हो साधुवाद,
आपसी भाईचारा,समाज सदा विकसित हो हमारा,
संस्कृति और सभ्यता की पहचान,सदा बनी रहे,बनी रहे।

बहन का रक्षाबन्ध,भाई की सौगंध,
त्योहारों के रंग,संस्कृतियों के नवीन ढंग,
गीतों की सुरलहरी और सीमा पर सजग प्रहरी,
कर्मठता के हौसलों की नित प्यास,सदा बनी रहे,बनी रहे।

 धर्मों की अनेकता,ईश्वर नाम की एकता,
भाषाओं में चाहे भिन्नता,भावों की समानता,
प्रेम,दया,सौहार्द,अपनत्व,सम्मान और स्वाभिमान,
सहिष्णुता,सदभावना की मिठास,सदा बनी रहे,बनी रहे।

राष्ट्र गान,राष्ट्र गीत,राष्ट्रीय चिन्ह,राष्ट्रीय खेल,
लोक गीत,लोक कलाएं,वीर गाथाओं की अमर बेल,
ग्रामीण जीवन,जल,जंगल,जमीन,विज्ञान का अद्भुत मेल,
जगत में भारत के इस तिरंगे की पहचान,सदा बनी रहे,बनी रहे।


                                                                                  -  जयश्री वर्मा

 


Tuesday, August 19, 2014

तो जी ही लूंगा

मुख फेर रहे हो क्यों मुझसे,जा रहे हो क्यूँ हाथ-साथ छोड़ कर ?        
सच है!जी नहीं पाओगे तुम भी इस तरह,राह अपनी मोड़ कर।

क्यों समेटे लिए जा रहे हो संग अपने,मेरे जीवन के सारे बसंत,
जियूँगा कैसे मैं पतझड़ सी वीरानी,बेखौफ़ ख़ामोशियों के संग।

बिन सहारे मैं तुम्हारे,न रह पाऊंगा,खुद ही से गैर हो जाऊँगा,
ख्यालों में छवि देखूंगा तेरी,लिखके तेरा नाम यूँ ही मिटाऊंगा।  

पर अगर इस तरह जाना ही है,तुम्हें यूँ मुझसे अंजाना बनकर,
ले जाओ सारी यादें अपनी,और फिर देखना न मुझे घूमकर।
  
करो मुझसे कुछ वादे,तुम्हें,तुम्हारे उन अपने लम्हों की कसम,
मेरा ज़िक्र भी नहीं लाओगे,कभी जुबां पर अपनी,ऐ मेरे सनम।

नहीं कमजोर पड़ूंगा,तुम्हारे लिए,जो जीना पड़ा तो जी ही लूंगा,
नहीं करूंगा अब प्रेम किसी से,न रोऊंगा न आहें ही भरूँगा।

शुभकामनाएं देता हूँ क्योंकि,सच्चा दिल सिर्फ दुआएं देता है,
राह में जो बिखरे हों कांटे तो उन्हें चुन के फूल बिछा देता है।

ईश्वर किसी दुश्मन को भी,कभी ऐसा,दर्द भरा दिन न दिखाए ,
कि जिस्म को रहना पड़े अकेले और जान उससे जुदा हो जाए। 

                                                     ( जयश्री वर्मा )


Wednesday, August 13, 2014

मैं हूँ युग युवा

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
मैं हूँ युग युवा,नित नयी लगन लगा,नव राहों पे बढ़ता जा हूँ,
शिक्षा की सीढ़ी,हौसलों के साथ,हर ऊँचाइयाँ चढ़ता जा  हूँ। 

राह में अनेक देवालय,मस्जिद,गिरजाघर और गुरूद्वारे मिले,
उन्हें शीश झुकाके,अंतर हृदय से,नमन मैं करता जा रहा हूँ। 

सभी ग्रंथों की शिक्षा,कुरान,बाइबिल,गुरुग्रंथ या पवित्र गीता,
उनकी सीख,सर-आँखों पे रख,मन ही मन गुनता जा रहा हूँ। 

अनेकता संग एकता में बसी,भारत की सुन्दर भिन्न संस्कृति, 
दोनों हाथों से अंगीकार कर,अंतर्मन से समझता जा रहा हूँ।

मैं भारत की नव तकदीर,मेरे लिए हर भारतीय एक सामान,
मैं मानवता का बीज लिए,हर जन के मन में रोपता जा रहा हूँ।

मुझे कहीं अन्यत्र न ढूंढो,मैं हर जागरूक सोच में बसा हुआ,
नव विकास की मशाल जला,ये राहें रौशन करता जा रहा हूँ। 

मैं इस हिन्दुस्तान का निर्भय युवा,मुझे बाधाओं से कैसा डर,
अपने इतिहास को धरोहर बना,नव भविष्य गढ़ता जा रहा हूँ।

मैं हूँ भारत की सच्ची तस्वीर,संसार पटल पर,अमरता लिख, 
आकाश-चाँद मुठ्ठी में बाँध,मंगल की जमीन छूने जा रहा हूँ।

मैं विकसित विचार,मैं हूँ युग युवा,उत्सुकता और हौसलों संग,
अपनी भारत माँ के आँचल के,नित नव सूत बुनता जा रहा हूँ।

                                                                 - जयश्री वर्मा



Wednesday, August 6, 2014

हे सुस्वादु टमाटर !

टमाटर का भाव 140 रुपए किलो होने पर !

 हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी ! 
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !

दुकानों पर बैठ के इतराते हो,
क्यूँ दाम अपने बढ़ाते जाते हो,
हम भी तो तरस रहे तुम बिन,
बटुए में पैसे रखे थे गिन-गिन,
पहुँच से फिर भी बाहर दिखते,
बहुत ही ऊँचे बोल में बिकते।

हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी ! 
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !

तुम बिन है सब्जी फीकी लागे,
तुम बिन है दाल न सुन्दर साजे,
सब्जियों पे तुम राज सा करते,
तुममें विटामिन भरपूर हैं बसते,
मेरी कढ़ाई की सब्जियों में भी,
लाली बन कर छा जाओ जी। 

हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी ! 
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !

तुम बिन सलाद न पूरी खुद देखो,
ये बेरौनक बस्ती सी अधूरी देखो,
काश मेरी प्लेट में भी आ विराजो,
औ सूनी मांग में सिन्दूर सा साजो,
रईसों से ही न केवल नाता जोड़ो,
मेरी तरफ भी रुख अपना मोड़ो।

हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी ! 
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !

जिस संग हो तुम वो मुस्काता है,
हो जिस संग नहीं वो झुंझलाता है,
काट-छांट के देखो बजट बनाया,
तुमको पाले में लाने को हरसंभव,
न जाने क्या-क्या है जुगत लड़ाया, 
पर तुम्हरा हिसाब समझ न पाया। 

हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी ! 
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !

तुम्हारे आजकल ऐसे भाव बढ़े हैं,
कि दिन दूने रात चौगुने से चढ़े हैं,
हम भी तुम्हें बेहद पसंद करते हैं,
तुम्हें दूर से देखकर आहें भरते हैं,
किलो दो किलो की बात को छोड़ो, 
पाव भर रूप में ही आ जाओ जी। 

हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी ! 
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !

                                           ( जयश्री वर्मा )