Thursday, February 14, 2019

ओ बसंत फिर आए तुम


अरे ओ बसंत! फिर से आए तुम ,
इक अजब हलचल सी लाए तुम ,
तुमने रंग बिखेरे पहले धरती पर ,
और फिर खुद पे ही इतराए तुम।

रंग भरी सी शरारतें सब बिखरीं ,
खूबसूरती जवाँ चेहरों पे निखरी ,
खेतों में है लहराए,गीतों की झड़ी ,
पर मेरी पलकें तो,सूनी सी पड़ीं।

कैसे हाल कहूँ तुम्हें इस जिय का ,
इस रीते और व्याकुल से मन का ,
यूँ न मुस्कुरा ओ निष्ठुर-निर्मोही ,
ये मन सूना,रास्ता देखे पिय का।

तुम क्या जानों,कैसी,विरह-वेदना ,
हर आहट पर द्वार,चौखट तकना,
हर सरसराहट पे धड़कन बढ़ जाना ,
तुम यूँ जानबूझ के न बनो बेगाना।

अब जब आ ही गए,तो ठहरो ज़रा ,
इन नैनों में,सपने ही भर लूँ ज़रा ,
ये भ्रम ही सही,पर ये है तो सुखद ,
इस डूबते मन को,कुछ लगे भला।  

दिल को बहलाने की,ये चाल चली ,
कल्पना लोक की है,ये डगर भली ,
सपनों की गलियों में,मैं टहली बड़ी ,
यूँ फिर से,अरमानों की बलि चढ़ी।

सारे रंग-उमंग,सब ओर बिखेरते ,
ऐसे पूरी धरती को,पुष्पों से घेरते ,
अरे ओ बसंत! फिर से आए तुम ,
इक अजब हलचल सी लाए तुम।

                                  - जयश्री वर्मा

11 comments:

  1. अति सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. सादर धन्यवाद आपका दीपशिखा जी !🙏 😊

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  2. तुम क्या जानों,कैसी विरह-वेदना ,
    हर आहट पे द्वार,चौखट तकना,
    हर सरसराहट,धड़कन बढ़ जाना ,
    तुम यूँ जान बूझ न बनो बेगाना।
    अति सुंदर सृजन ,सादर स्नेह

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  3. विरही को बसंत न भाये
    शीतल शशि ताप बरसाये...
    बहुत ही सुन्दर रचना..
    वाह!!!

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    1. सादर धन्यवाद आपका सुधा देवरानी जी !🙏 😊

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  4. जयश्री वर्मा जी वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें
    नई पोस्ट - लिखता हूँ एक नज्म तुम्हारे लिए
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !🙏 😊

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  5. Ration Card
    आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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    1. सादर धन्यवाद आपका 🙏 😊

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