Wednesday, April 19, 2017

आज तो प्रिय मेरा रूठने का मन है

आज सुनो!प्रिय तुमसे,मेरा रूठने का मन है,
बस अपना वज़ूद ढूंढना है,नहीं कोई गम है,
तुम्हारा प्यार यूँही,नापने का मन हो चला है,
तुम भूले ध्यान रखना,क्या बुरा,क्या भला है।

आज तो सर में दर्द बड़ा,यही बनाना बहाना है,
असल में तो आज यूँ ही,तुमको आजमाना है,
तौलना है कि,तुम्हें मुझसे,कितना लगाव है,
लव यू कहने में,कितना सच कितना बनाव है।

क्या अब भी तुम मुझे,देख सब भूल बैठोगे ?
क्या सारे दिन आज,संग में मेरे ही ठहरोगे ?
क्या चाय संग फटाफट,ब्रेड बटर बनाओगे ?
क्या पानी संग दौड़के,सेरिडॉन ले आओगे ?

क्या बाम मेरे माथे पे,अपने हाथों से मलोगे ?
मुझे सुकून पाता देख,मन ही मन खिलोगे ?
मेरा मन बदलने को,फिल्म कोई दिखाओगे ?
या पंचवटी की,चटपटी चाट तुम खिलाओगे ?

या कहोगे चलो तुम्हें,पार्क हवा खिला लाऊं ?
या अमूल की पसंदीदा,बटरस्कॉच दिलवाऊं ?
या फोन मिला के,मेरी माँ से बात कराओगे ?
या खुदही यहां-वहां की,सुना मन बहलाओगे ?

तुम्हारी उदासीनता से,मेरा मन बौखलाया है ,
अपना महत्व जानने का,कीड़ा कुलबुलाया है,
क्या अब तुम्हें मुझसे,मुहब्बत ही नहीं रही ?
या मैं अब पुरानी हो चली हूँ,ये बात है सही ?

ये भी कोई जीवन है,न रूठना और न मनाना ,
तुम्हारा रोज ऑफिस और मेरा टिफिन बनाना ,
या बहुत साल संग रहते,सब आदत हो गई है ,
जो थी प्यार की खुमारी,कहीं जा के सो गई है।

तुम कामकाज पे जाते हो,मैं घर सम्हालती हूँ ,
न तो तुम कुछ कहते हो,और न मैं बोलती हूँ ,
मुझे तो ये पल-छिन,बिलकुल भी नहीं हैं भाते ,
हम मशीन की तरह,रोज के ये दिन हैं बिताते।

तुम चाँद तारों की अब कोई,बात नहीं हो करते ,
ये दिन बोरियत भरे अब तो,मुझसे नहीं हैं कटते ,
सो ! आज तो प्रिय मेरा तुमसे,रूठने का मन है ,
बस अपना वजूद ढूंढना है,और नहीं कोई गम है।

                                                               (  जयश्री वर्मा  )

Monday, April 3, 2017

मुफ्त नहीं मुहब्बत मेरी

मुफ्त नहीं मुहब्बत मेरी,तुम्हें झुकना होगा,
तुम सिर्फ मेरे हो,ये वादा तुम्हें करना होगा,
धोखा नहीं चलेगा,प्यार के इस व्यापार में,
खुल के दुनिया के सामने,दम भरना होगा।

सूरज की लाली संग,आशाएं जगानी होंगी,
दिन भर मेरी गृहस्थी की,नाव चलानी होगी,
शाम ढले मेरी चाहतों के,संग ढलना होगा,
मैं हूँ शमा निःशब्द,मुझ संग जलना होगा।

सावन के सभी गीत,मेरे सुरों संग गाने होंगे,
मेरे जज़्बात पतझड़ में भी,गुनगुनाने होंगे,
घर की किलकारियाँ,गले से लगानी होंगी,
ऊँगली थाम के उन्हें,हर राह दिखानी होगी।

मायूसियों में,अपना कन्धा भी बढ़ाना होगा,
बाँहों के दायरे में बाँध कर,सहलाना होगा,
आंसुओं को मेरी पलकों में,नहीं आने दोगे,
खुशियों को कभी मुझसे,दूर न जाने दोगे।

जब मेरा ये वज़ूद,तुम्हारी पहचान बन जाए,
मेरा नाम भी जब,तुम्हारा नाम ही कहलाए,
मेरी हिफाज़त,तुम्हारे अरमान में ढल जाए,
तुम्हारे ख़्वाबों में जब,मेरा तसव्वुर घुल जाएं।

विवाह की सारी कसमों को,निभाना ही होगा,
हर सुख-दुःख में रहोगे साथ,ये जताना होगा,
कितनी भी विपत्ति हो,मुख नहीं फेरोगे कभी,
मेरे हो,मेरे रहोगे सदा,कहो यहीं और अभी।  

मौसमों के साथ,मुझे महफूज़ रखना होगा,
अपनी जान से भी ज्यादा,प्यार करना होगा,
मैं कितनी भी ढल जाऊं,संग मेरे रहोगे सदा,
सच्चा साथी होने का फ़र्ज़,पूरा करोगे अदा।

सच कहो कभी भी,भरोसा मेरा नहीं तोड़ोगे,
जीवन के झंझावातों में,अकेला नहीं छोड़ोगे ,
तब मैं तुम्हारी संगिनी,हमसाया बन जाऊँगी,
तुम्हारी हर परिस्थिति के साथ ढल जाऊँगी।
पर ----
मुफ्त नहीं मुहब्बत मेरी,तुम्हें झुकना होगा,
तुम सिर्फ मेरे हो,ये वादा तुम्हें करना होगा।

                                              ( जयश्री वर्मा )