Wednesday, May 6, 2015

क्यों पूछते हैं?

हाथों में हाथ थाम,साथ-साथ तय की लम्बी दूरियाँ,
हर मोड़ पे कसमें-वादे भी,निगाहों ने किये हैं बयाँ,
आपकी मंजिल की राहें,जब बन गयीं मंजिल मेरी,
फिर भला आप मेरा पता,मुझसे ही क्यों पूछते हैं?

आपकी हमराज़ हूँ मैं,ये तो खुद ही कुबूला आपने,
मुस्कान और आंसुओं के राज,खोले हमने साथ में,
आपको दिल देने में मैंने,देर न की इकपल सनम ,
फिर भी मुहब्बत की थाह,मुझसे ही क्यों पूछते हैं?

आपके हर गीत में,जादुई-शब्दों संग रहा साथ मेरा,
सप्तक कोई भी रहा हो,मधुर राग रहा है मेरा खरा,
बेसुरा-सुरीला तो आपके,हाथों रहा है हरदम सनम,
फिर गीतों की झंकार फीकी,मुझसे ही क्यों पूछते हैं?

आपके दिन-रात संग मैं,सोई-जगी हूँ आपके लिए,
आपके ख्वाब,जज़्बात,अहम रहे सदा ही मेरे लिए,
आपने खुद से ही है माना,खुद को अधूरा मेरे बिन,
फिर भला रिश्ते का नाम, मुझसे ही क्यों पूछते हैं?

जमाने की निगाहें तो,हरदम ही रिश्तों को हैं तोलतीं,
हर इक बंधन की डोर के,रेशों को हैं रह-रह खोलतीं,
गर साथ अपना है सच्चा,और अटूट है भी,ऐ साथी मेरे,
फिर लोगों के सवालों के जवाब,मुझसे ही क्यों पूछते हैं?

                                                                                              - जयश्री वर्मा


4 comments:

  1. भावपूर्ण प्रस्तुति ...सादर

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    1. बहुत - बहुत धन्यवाद आपका मोहन सेठी जी !

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  2. शायद इसलिये कि

    जो बात तेरे बयाँ मेँ है ...वो और इस जहाँ मेँ कहाँ है ;) सुन्दर अहसासोँ से सजी रचना के लिये बधाई

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    1. बहुत - बहुत धन्यवाद आपका मोहिन्दर कुमार जी !

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