Monday, May 19, 2014

प्रेम और जीवन

प्यार अनूठा एहसास है,बड़ा ही प्यारा,बहुत ही सुंदर ,
यह रहता हर किसी की,दिल की गहराइयों के अंदर ।

धर्म-जात की ऊंची-ऊंची दीवारें,न साध सकीं इसको ,
किसी भी देश-जहान की सीमाएं,न बाँध सकीं इसको।

यह निश्छल,निर्बाध,पवित्र बहती हुई सरिता सा है ,
यह ओस बूँद संग खिली हुई,मासूम कलिका सा है ।

यह सुखद स्वप्न रात्रि और भावों से भरा मेला सा है ,
यह शीतल दिन और आनंदित शाम की बेला सा है।

यह जेठ की अगन में,शीतल बयार के झोंके सरीखा ,
यह पूस की ठिठुरती ठंडक में,गुनगुनी धुप के जैसा।

प्रेम बंधन वो है,जो सभी रिश्तों को,कस के रखता है ,
गर संग हो मीत जीवन सुख बगिया सा खिलता है।

इसने अमीरी-गरीबी,रंग-रूप,वर्ण कोई भेद न जाना ,
इस राह की कैसी भी दुर्गम कठिनाइयों को न माना।

यह ईश्वर-अंश है,सभी जीवों में,सामान ही पलता है ,
जिसकी जैसी सोच के सांचे,ये उसी रूप में ढलता है।

इस भाव बिन तो सबका जीवन,जैसे गरल बन जाए ,
मानव हृदय में जैसे मानवता और सरलता मर जाए।

                                                           ( जयश्री वर्मा )








4 comments:

  1. बड़ी अदभुद रचनाये लिखती है आप में भी कुछ लिखने का प्रयास करता हूँ , कृपया मुझ जैसे साहित्य के विद्यार्थी को सलाह दे
    http://myfeelinginmywords-nishantyadav.blogspot.in

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    1. सर्वप्रथम धन्यवाद आपका निशांत यादव जी ! किसी भी कार्य की सफलता आपकी रूचि , समय और निरन्तर प्रयास में छिपी होती है। शुभकामनाएं आपकी सफलता के लिए !

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  2. बहुत सुन्दर चित्रण । संग्रहनीय रचना । सादर आभार।

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    1. आपकी खूबसूरत,उत्साहपरक टिप्पणियों के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !

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