Tuesday, February 11, 2014

कैसी ये रीत

दिल मेरा और राज़ आपका,कैसी ये रीत है ,
मेरी ही हार इसमें,और आपकी ही जीत है ,
मन के तारों का जुड़ना,इक मीठा संगीत है ,
ये जीवन कि मधुरता,ये मेरे मीत-प्रीत है।
आपके पलकों के भंवर,बहुत कुछ कहते हैं ,
आपके दिल के भेद,इनमें साफ़ दीखते हैं ,
ये इधर-उधर डोलते से,झूठे ही भटकते हैं ,
जानता हूँ मैं,ये मुझे ढूंढ,मुझपे ही ठहरते हैं।

आपकी ये जो मुस्कराहट है,लजीली बड़ी है ,
आपकी ये खिलखिलाहट,हठीली सी बड़ी है ,
लाख रोकूँ खुद को पर ये दिल में उतरती है ,
मेरे ख्यालों,और रातों में सजती संवरती है।

आपकी पायल की रुनझुन,हृदय सहलाती है ,
कहीं पर भी हों आप,आसपास नज़र आती हैं ,
आपके क़दमों संग ये,कितनी ही दूर चली जाएँ ,
बरबस वापस आ,मुझसे नज़दीकियां जताती हैं।

अरे!प्रेम के इन सारे इशारों को,मैं भी समझता हूँ ,
पर मेरे लिए आसान नहीं है,थोड़ा सा झिझकता हूँ ,
आपको कुदरत ने शिकार को,तीर बहुत से दिए हैं ,
ये आसपास से चलते हैं,मेरा दिल घायल किये हैं ।

                                                                                     ( जयश्री वर्मा )

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .

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    1. मेरी इस रचना पर आपके सराहना भरे शब्दों के लिए आपका आभार !

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