Monday, January 20, 2014

तुम सही थे मैं गलत


तुम धारा के विपरीत चलने की आदत के अनुसार,
उतर पड़े जानने को कि न जाने क्या है नया उस पार ।

मैं ताकता,मन मसोसता और सोचता ही रह गया,
अजब डर को पकड़े दिल को कचोटता ही रह गया ।

तुमने गहराई में उतरकर कुछ खोया खुछ पाया,
मुझे डराता रहा हरपल अंजाना,अनहोनी का साया ।

आज तुम्हारे हाथों में कुछ हार तो कुछ जीत है,
कुछ मिले कुछ बिछड़े और कुछ नए पुराने मीत हैं ।

तुमने समय बहुमूल्य समझ निभाया अपना धर्म,
खोज लिया जानी,कुछ अनजानी,घटनाओं का मर्म।

तुमने भविष्य पीढ़ियों के लिए मार्ग बनाया सुगम,
कहलाये तुम पथप्रदर्शक हर किसी ने किया नमन।

ईश्वर ने भी कर्मशील का सहयोग सदा ही है किया,
विपरीतताओं ने भी प्रयत्नशील को हाथों-हाथ लिया।

मैं पुरानी परिपाटी की लीक पर ही रहा सदा खड़ा,
अपने डर,उसूल और कुंठाओं संग सदा ही रहा अड़ा।

अपने भीतरी भय और रूढ़ियों संग सिमटा ही रहा,
विधाता,काल,भाग्य और बुरे वक्त को कोसता ही रहा ।

तुमने बंधन तोड़ पुराने,नया आसमान है अपनाया,
और आने वाली पीढ़ी को है नई ऊंचाई तक पहुंचाया ।

बाद तुम्हारे फिर आयेंगे तुम सरीखे कुछ मतवाले,
तुम्हारे छोड़ी ऊंचाइयों को और भी आगे बढ़ाने वाले।

समझा मैं जीवन है नव नीतियों को खोजना सतत,
आज सोचता हूँ कि ऐ मेरे मित्र तुम सही थे मैं गलत ।

                                                        (  जयश्री वर्मा )







No comments:

Post a Comment