Wednesday, May 22, 2013

ऐसा करते हैं कि -

 ऐसा करते हैं कि -

चलो इक गीत गुनगुनाएं-
मधुर-सुरीले सुर छंदों संग इसे सजाएं,
के प्रेम की लय झलके प्रतिपल जिसमें,
ऐसा इक जादुई सा सुर-संगीत बनाएं।

चलो इक रात जगाएं -
दूर करें चांदनी से हिंसा के अंधियारे,
और टांक दें दिपदिप-टिमटिम करते,
अपनत्व भरे तारे अनगिन बहुत सारे।

चलो अब धरा सजाएं-
हरियाली ही हरियाली इसपे हम उगायें,
फूलों को महकाएं,झूमते वृक्ष,फूल,फल,
पक्षी,रंगीन तितली,काले भंवरे बहकाएं।

चलो इक आकाश बनाएं-
ऊँची पर्वत चोटी,पीछे से सूरज दमकाएं,
या इन्द्रधनुष रंगरंगीला,सात रंग का और,
या घने मेघों बीच,चंचल बिजली चमकाएं।

चलो इक घर बसायें-
सुकून की दीवारें हों,और हों प्यार के पल्ले,
छत हो मजबूत अपने इरादों-वादों की,और-
झरोखे,द्वार पे मीठे स्वप्नों के छल्ले सजाएं।

चलो नव वर्ष मनाएं-
भुला दें बीते वर्ष के दुःख,बैर,कड़वाहट,
होठों पे मुस्कान संग अपनत्व की चाहत,
सब मिल इंसानियत की फसल उगाएं। 

                                                     ( जयश्री वर्मा )

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