Tuesday, February 5, 2013

रंग भरे सपने


मित्रों मेरी यह रचना " रंग भरे सपने " समाचार पत्र " अमर उजाला " की " रूपायन "में आज प्रकाशित हुई है, आप भी इसे पढ़ें !

तितली के पंखों सरीखे,रंग भरे सपने हों ,
नहीं किसी गैर के,बस सिर्फ मेरे अपने हों।

मेरे सपनों की नैया की पतवार मेरे हाथ हो,
मन चाहे कहीं चलूँ,इस पार या उस पार को,
कोई न रोके और अब कोई भी न टोके मुझे,
मेरी सोच की लहरों से भरा सागर अथाह हो।

कब कहाँ रुकोगे ?अब कहाँ को जाते हो ?
कोई भी न बूझे मुझसे,कोई न सवाल हो ,
बाँहों को फैलाकर,अंजुली भर-भर ले लूं,
बूँद-बूँद पीलूं मैं ऐसी खुशियाँ अपार हों।

मेरी ही दुनिया हो और मेरा ही सागर हो,
इन्द्रधनुष के रंगों से भरी मेरी गागर हो,
पंछी बन उड़ चलूँ मैं,यहाँ-वहां जहाँ-तहाँ,
मेरे संसार में प्यार की,गलियां हज़ार हों।

शब्दों को बांध-बांध,मैं प्रेम गीत बुन डालूं,
जोड़-जोड़ रिश्तों को,आपस में सिल डालूं,
इंसानी दुनिया में,जहाँ मानवी ही नाते हों,
नफ़रत की फसल न हो,सौहार्द की बातें हों।

तितली के पंखों सरीखे,रंग भरे सपने हों,
नहीं किसी गैर के,बस सिर्फ मेरे अपने हों।

                                                         (जयश्री वर्मा )


8 comments:

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    1. बहुत - बहुत धन्यवाद आपका !

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    2. u r gr8 ma'am & wc & wc

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    3. बहुत -बहुत धन्यवाद आपका Jayshri patel जी !परन्तु ये wc का मतलब मुझे समझ नहीं आया ! wc - welcome या फिर कुछ और ?

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  2. जीतनी आपकी रचना लाइक कि हे वो अभी पढ़ी मेने बहोत जयदा अछा आप लिखती ही मेम

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    1. आप लोगों के प्रशंसा भरे शब्द ही हैं जिनके द्वारा मैं कुछ लिख कर आप लोगों को पढ़ा पा रही हूँ ! बहुत -बहुत धन्यवाद आपका Jayshri patel जी !

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